जोगेंद्र मावी, ब्यूरो
हरिद्वार। आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तरांचल की अंतरंग सभा की बैठक में आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती के जन्मवर्ष के 200 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में आर्य समाज की धारणाओं को प्रसारित करने का निर्णय लिया। सभा में आर्य समाज के सन्यासियों, वानप्रस्थियों के साथ विभिन्न शाखाओं के मुख्य प्रतिनिधियों ने आर्य समाज के सिद्धांतों की जरूरत बताते हुए नई पीढ़ी को जागृत करने के साथ नए सन्यासी एवं वानप्रस्थी युवा भी तैयार करने को आह्वान किया।
मंगलवार को वेद मंदिर आश्रम में सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान स्वामी आर्यवेश ने महर्षि दयानंद सरस्वती के उद्देश्यों को बताते हुए कहा कि उन्होंने अनेक मिथ्याओं व धारणाओं को तोड़ते हुए अनुचित पुरातन परंपराओं का खंडन किया। महर्षि दयानंद ने सर्वप्रथम उद्घोष किया था कि वेद सभी विद्याओं की पुस्तक है। वेद का पढऩा-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है। महर्षि जी ने संपूर्ण भारतीय जनमानस को उन्होंने वेदों की ओर लौटने का आह्वान किया था।
स्वामी आर्यवेश ने भारत देश को विश्व गुरू बनाने के लिए महर्षि दयानंद के सिदृधांतों को लागू कराते हुए उन पर चलने की जरूरत बताई।
पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद ने कहा कि आर्य समाज की स्थापना का उद्देश्य वेदों के उपदेशों से ही मनुष्य की व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करना है।
सभा में महर्षि दयानंद सरस्वती के द्विशताब्दी जयंती समारोह को जनपद हरिद्वार की विभिन्न शाखाओं में भव्य रूप से मनाने का संकल्प लिया। सम्मेलन 25 से 26 नवंबर—2023 को गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में आयोजित किया जाएगा।
इस मौके पर हाकम सिंह, मैनपाल, नक्कल बंधु, ओमप्रकाश मलिक, अशोक कुमार, बिजेंद्र सिंह, स्वामी ओमानंद, वीरेंद्र पंवार, सुषमा शर्मा, पदमा चावला, पुष्पा गोसांई, महक सिंह पंवार, नाथीराम आर्य, अभिषेक आर्य आदि समेत आर्य समाज की विभिन्न शाखाओं के प्रतिनिधि शामिल हुए।

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