जोगेंद्र मावी, ब्यूरो
हरिद्वार। सेवा नियमावली के तहत आईएएस अफसर किसी भी जांच मामले में प्रेसवार्ता नहीं कर सकते और जांच के मामलों में न ही किसी को अपना सार्वजनिक बयान दे सकते हैं। ऐसे विवादित मामलों में दूसरे जनपद में जाने के लिए शासन से अनुमति लेनी होती है। लेकिन आजकल एक अधिकारी का मामला चर्चाओं में है। उनकी द्वारा किए गए कार्य की जांच निर्वाचित पदाधिकारी ने बैठाई है और बोर्ड बैठक में भी उनका आचरण उठाया गया था। लेकिन बौखलाएं अधिकारी ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए नोटिस जारी किए। अधिकारी के आचरण की शिकायत शासन के उच्च अधिकारियों से की जाए तो जांच आयोग जांच करके अधिकारी पर कार्रवाई करेगा।
सेवा नियमावली के तहत आईएएस अधिकारियों को प्रेसवार्ता आयोजित करने या अपने विचारों को सार्वजनिक रूप से व्यक्त करने से मना किया गया है. यह नियम केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964 के तहत उल्लिखित है, जो अधिकारियों को राजनीतिक तटस्थता बनाए रखने और सरकारी नीतियों की सार्वजनिक आलोचना करने से बचने का निर्देश देता है।
विस्तार: सेवा नियमावली और प्रेस वार्ता: आईएएस अधिकारियों के लिए सिविल सेवा आचरण नियम, 1964 एक महत्वपूर्ण नियम है जो उनके आचरण और व्यवहार को नियंत्रित करता है।
राजनीतिक तटस्थता: यह नियम अधिकारियों को राजनीतिक रूप से तटस्थ रहने और किसी भी राजनीतिक दल से संबंध स्थापित करने से रोकता है।
सरकारी नीतियों की आलोचना: अधिकारियों को सार्वजनिक रूप से सरकारी नीतियों की आलोचना करने या उन्हें कमतर दिखाने से भी मना किया गया है।
प्रसारण और प्रकाशन: आईएएस अधिकारी किसी भी रेडियो प्रसारण, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या प्रकाशित दस्तावेज़ में अपने नाम से कोई प्रसारण नहीं कर सकते हैं.
संविधान का अनुच्छेद 311: यह संविधान का अनुच्छेद 311 सिविल सेवकों को मनमाने ढंग से बर्खास्तगी के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।
मुखबिरी: आईएएस अधिकारियों को मुखबिरी करने से भी मना किया गया है, इसका मतलब है कि वे अपनी नौकरी से संबंधित जानकारी सार्वजनिक रूप से लीक नहीं कर सकते.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: हालांकि, कुछ लोगों का मानना ​​है कि सेवा नियमों के कारण आईएएस अधिकारियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित हो जाती है.

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