जोगेंद्र मावी, ब्यूरो
देहरादून। परिवार के मोह में फंसे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा से उतारी अपनी पुत्री अनुपमा रावत के लिए खूब आंसू बहाएं, जनता से माफी मांगते हुए कई बार जीताने के लिए अपील की। पिता—पुत्री कई सभाओं में रोए और खूब आंसू बहाएं, जनता उनके घडियाली आंसूओं में बह गई और अनुपमा रावत को चुनाव जीता दिया। लेकिन अब चंपावत में उप चुनाव हुआ तो उसमें कांग्रेस की सीनियर लीडर निर्मला गहतोड़ी को चुनाव मैदान में उताकर चुनाव प्रचार तक नहीं किया। महिला नेता ने अपनी खूब भड़ास निकालकर ऐसे नेताओं को राजनीतिक मंच से नंगा करने का काम किया है।
भाजपा प्रत्याशी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सामने कांग्रेस ने सीनियर लीडर निर्मला गहतोड़ी को प्रत्याशी बनाया। चुनाव प्रचार दोनों पार्टियों ने करना शुरू किया, लेकिन कांग्रेस के नेता सोशल वेबसाइट पर फोटो डालने के लिए चुनाव प्रचार में पहुंचे। हरीश रावत मात्र दो दिन प्रचार प्रसार में रहे। मीडिया में सुर्खिया बनने के लिए लालकुंआ में सड़क के किनारे पर हुए एक गड्ढ़े पर बैठकर धरना प्रदर्शन किया। लेकिन चुनाव प्रचार में कोई मार्मिक अपील तक नहीं। यहां तक की उनकी पुत्री विधायक अनुपमा रावत भी चुनाव प्रचार में नहीं गई, जोकि पिता की तरह चर्चाओं में बने रहने के लिए विधानसभा सत्र में तरह—तरह से प्रदर्शन करती रही।
चुनाव प्रचार में कांग्रेस के नेताओं के न पहुंचने पर लोग निर्मला गहतोड़ी को बलि का बकरा बताने लगे। अपनी चुनावी सभा में महिला नेता निर्मला ने खूब जान फूंकी, लेकिन कांग्रेस लीडर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत एक भी मार्मिक अपील नहीं कर सके। यह खुलासा स्वयं निर्मला गहतोड़ी करते हुए बताया है कि हरीश रावत अपनी सभा कराने के लिए उनपर ही दवाब बनाते रहे।
हरीश रावत सभी बातों को लेकर स्पष्टीकरण जारी करते हैं, लेकिन खबर प्रसारित जारी होने के 14 घंटे बाद तक उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं, हालांकि वे जवाब बड़े शातिर तरीके से देते हैं। उस जवाब का जनता को इंतजार है। वैसे बाद में कई नेता हार की समीक्षा करने की बात कहते हुए पल्ला झाड़ने का काम अवश्य करेंगे।
अपने चुनाव परिणाम को जानकर निर्मला गहतोड़ी ने तो पहले ही अपने को हारा हुआ मान लिया है, लेकिन कांग्रेस के नेता मतगणना तक में नहीं जा रहे हैं।
बतातें चले कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत अपनी मूढी कार में साथ रखते हैं, क्योंकि राजनीति के फनकार नेता कभी भी धरना प्रदर्शन करने या राजनीति करने के लिए उसका कही भी उपयोग कर लेते हैं।