मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के कार्डियक साइंस के विशेषज्ञ डॉक्टर राजीव अग्रवाल

जोगेंद्र मावी, ब्यूरो
हरिद्वार। मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल साकेत, नई दिल्ली में कार्डियक साइंस के प्रिंसिपल डायरेक्टर व यूनिट हेड डॉक्टर राजीव अग्रवाल ने महिलाओं में कार्डियो वैस्कुलर डिजीज (सीवीडी) से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर जानकारी साझा की। महिलाओं में कार्डियो वैस्कुलर डिजीज जैसे इसेमिक हार्ट डिजीज, हार्ट फेल, एरिथमियास, हाइपरटेंशन, वैल्वुलर हार्ट डिजीज, कंजेनिटल हार्ट डिजीज और पेरिफेरल हार्ट डिजीज शामिल हैं। महिलाओं में कोरोनरी हार्ट डिजीज (सीएचडी) मौत का सबसे आम कारण होता है। कई रिसर्च स्टडी में ये साबित भी हो चुका है। आमतौर पर ज्यादातर महिलाओं को लगता है कि ब्रेस्ट कैंसर की सबसे खतरनाक बीमारी है और वो कोरोनरी हार्ट डिजीज की गंभीरता को नहीं समझती हैं।
40 साल की महिलाओं में 2 में से 1 को पूरे जीवन में सीवीडी होने का रिस्क रहता है, जबकि 3 में से 1 महिला में सीएचडी और 5 में से 1 महिला को हार्ट फेल और स्ट्रोक का खतरा रहता है।
पुरुषों की तुलना में महिलाओं में कोरोनरी हार्ट डिजीज 10 साल लेट होता है जबकि मृत्यु दर बराबर या ज्यादा ही रहती है। प्रस्तुति और इलाज दोनों में अंतर के कारण पुरुषों और महिलाओं में सीएचडी के परिणाम में भी फर्क आता है। ज्यादातर महिलाएं बिना लक्षण ही सडन कार्डियक डेथ का शिकार हो जाती हैं, जबकि पुरुषों में सडन कार्डियक डेथ अलार्मिंग लक्षण और स्पष्ट कारणों से होती है।
महिलाओं और पुरुषों में अंतर बताने वाले फैक्टर
-महिलाओं में सीएचडी के बारे में जागरूकता की कमी
-असामान्य प्रेजेंटेशन
-अस्पताल में देरी से भर्ती
-कम देखभाल
-अधिक जटिलताएं
2010 से पहले लोगों को ये जानकारी नहीं थी, कि महिलाओं में सीएचडी से सबसे ज्यादा मौतें हो रही थीं। डब्ल्यूएचओ ने जब इस मामले को उठाया तो इस पर लोगों की नजर गई।
सीएचडी का डायग्नोसिस, इलाज और प्रोग्नोसिस पुरुषों और महिलाओं में अलग-अलग होता है। स्मोकिंग, एक्सरसाइज में कमी, मोटापा, डायबिटीज और हाइपरटेंशन की समस्या पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा खतरनाक होती है। महिलाओं में एक्यूट कोरोनरी सिंड्रोम की प्रस्तुति चेस्ट पेन की तुलना में ज्यादा असामान्य है। ऐसे लोगों में सांस की तकलीफ, जबड़े और कंधे के दर्द, मतली, चक्कर आना, लिथार्ज़ीनेस की शिकायत हो सकती है। आमतौर पर महिलाएं इस तरह के लक्षणों को नजरअंदाज कर देती हैं या फिर दवा लेने में देरी कर देती हैं। कई बार डॉक्टर भी चूक कर जाते हैं और बीमारी डायग्नोज होने में देरी हो जाती है। यही वजह है कि इमरजेंसी वार्ड में कार्डियक अरेस्ट के ज्यादा मामले महिलाओं से जुड़े होते हैं। हॉस्पिटल के अंदर एक्यूट मायोकार्डियल इन्फार्कशन से पुरुषों की तुलना में महिलाओं में मृत्यु दर ज्यादा रहती है।
महिलाओं में कार्डियो वैस्कुलर का रिस्क कम करने के लिए ज्यादा कोशिशें की जानी चाहिए, खासकर रजोनिवृत्ति की उम्र के बाद
लोगों को ये भी बताने की जरूरत है कि हार्ट डिजीज महिलाओं को ज्यादा स्ट्राइक कर सकती है और लक्षण भी स्पष्ट नहीं होते हैं। महिलाओं को खुद भी सामान्य रूप से अपनी हेल्थ को नजरअंदाज न करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए और पुरुषों की तुलना में किसी भी तीव्र लक्षण के लिए तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए। इसके अलावा मेडिकल प्रोफेशनल और डॉक्टरों को भी संवेदनशील होना चाहिए कि वे युवा महिलाओं में भी असामान्य लक्षणों को केवल चिंता के कारण खारिज न करें।
महिलाओं को भी पुरुष की तुलना में डाइट, एक्सरसाइज, वजन, शुगर, ब्लड प्रेशर, स्मोकिंग और कोलेस्ट्रॉल को लेकर सावधानी बरतनी चाहिए। हेल्थ इंश्योरेंस भी इसमें अहम रोल निभाएगा ताकि महिलाएं आगे आकर अर्जेंट केयर पा सकें और उनका जीवन बचाया जा सके।

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