जोगेंद्र मावी, ब्यूरो
हरिद्वार। नगर निगम की ओर से सराय में खरीदी गई भूमि में हुआ व्यापक भ्रष्टाचार में एक नया कारनामा सामने आया है। नगर निगम के टैक्स विभाग में तैनात रहे वेदपाल कलर्क की सेवा का विस्तार आखिर किसके इशारे पर नगर आयुक्त वरुण चौधरी ने किया, इसका खुलासा होना भी बेहद जरूरी बताया जा रहा है। बताया जा रहा है कि ये वेदपाल कर्मचारी भी सराय की भूमि में भ्रष्टाचार कराने का एक मुख्य कारक रहा है। वेदपाल इतना शातिर कर्मचारी रहा है कि उसने हरिद्वार के बड़े—बड़े नेताओं इसे नमस्कार करते रहे हैं। हालांकि घोटाला खुलने पर अब इस बाबू वेदपाल की सेवा समाप्त कर दी गई, लेकिन सूत्रधारों में इसका नाम प्रमुख है।
नगर निगम हरिद्वार में एक से बड़ा वाशिंदा सेवा में रहा है। नगर आयुक्त के निर्देशन में हुए सराय की भूमि में खरीद फरोख्त में प्रतिदिन नए—नए खुलासे हो रहे हैं। इसमें सेवानिवृत्त बाबू वेदपाल बड़ा सूत्रधार रहा है। इसकी सेवा बढ़ाने के लिए एक दिग्गज नेता ने पूरी ताकत लगा दी थी। नगर आयुक्त पर दवाब बनाकर इसे सेवा विस्तार दिलाया गया। आखिर वो नेता कौन है, इसका खुलासा स्वयं एमएनए करें, तो ही अच्छा है।
ये है मामला
कुल भूमि 23,004 वर्ग मीटर खरीदी गई, जोकि प्रति बीघा 666.66 मीटर के हिसाब से 34.51 बीघा बैठती है। यह भूमि 53 करोड़ 06 लाख, 96 हजार 565 रुपये की नगद में खरीदी और 5 प्रतिशत के हिसाब से करीब 2 करोड़ 70 लाख रुपये का स्टाम्प और एक लाख रुपये की चार रसीद कटवाई गई। 4 रजिस्ट्री की लिखाई 12 हजार रुपये होती है। 55 करोड़ 77 लाख 96 हजार 655 रुपये की होती है।
रिंग रोड से मिले मुआवजे को लगाया ठिकाने
नगर निगम हरिद्वार के अधिकारियों का कारनामा बड़ी सुर्खियों में है। नगर निगम ही मेयर किरण जैसल ने भूमि खरीद मामले में भारी अनियमितता बरते जाने के मामले को उठाया और इसके लिए पार्षदों की समिति भी बनाई। लेकिन इस भूमि खरीद में किस कदर से सरकारी धनराशि का जोकि जगजीतपुर में मेडिकल कॉलेज के सामने से निकली रिंग रोड के बदले में नगर निगम की भूमि के अधिग्रहण के बदले में मिली धनराशि का दुरुपयोग हुआ, इसका जागता जीता उदाहरण सामने है। इस भूमि को बेचने का आफर पिछले नगर आयुक्त दयानंद सरस्वती को भी आया था, लेकिन उन्होंने नहीं खरीदी, लेकिन जब प्रशासक नियुक्त हुए तो ये खेल खेल दिया गया। हालांकि अब केवल नगर निगम के अधिकारी ही भूमि खरीद मामले में संलिप्त है। जिस भूमि को भूमि मालिक कूड़ों के ढेरों और उठती बदबू के चलते मात्र 10 लाख रुपये बीघा बेचने को तैयार था उसकी भूमि एक करोड़ 74 लाख 83 हजार 832 रुपये बिक गई।
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