जोगेंद्र मावी, ब्यूरो
हरिद्वार। तपेदिक यानि टीबी Mycobacterium tuberculosis नामक बैक्टीरिया से होती है जो मनुष्य के फेफड़ो पर असर डालती है। टीबी एक संक्रामक बीमारी है जो संक्रमित व्यक्ति के खांसने, छींकने और थूकने से फैलती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, वर्ष 2022 में इस बीमारी से दुनियाभर में लगभग 1 करोड़ से अधिक लोग प्रभावित थे। यह एक ठीक होने वाली बीमारी होने के बाद भी बहुत से लोग इसकी वजह से काल के ग्रास में समा जाते हैं। यह बीमारी दुनिया के लगभग सभी देशो में फैली हुई है और भारत में भी वर्ष 1962 से ही इसकी रोकथाम के लिए सरकारी योजना चल रही हैं जिसमें रोगियों को निःशुल्क दवाइयां उपलब्ध हैं।
इस अवसर पर आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि वर्तमान में टीबी के इलाज के लिए प्रयोग होने वाली दवाइयों में limited bio availability होने के कारण बैक्टीरिया प्रायः एक या एक से अधिक दवाओं के प्रति resistant हो जाते हैं। इसके अलावा, लंबे समय तक इन दवाओं के सेवन से hepatotoxicity की सम्भावना बनी रहती है। अतः नई टीबी दवाओं या सहायक उपचार की आवश्यकता है जो इलाज को और अधिक प्रभावी बना सके।
पतंजलि द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार छोटी कटेली का अर्क (Solanum virginianum extract), SVE टीबी के इलाज में प्रभावी है। इस अध्ययन का उद्देश्य टीबी के लिए एक आयुर्वेदिक उपचार विकसित करना था जिनका वर्तमान में प्रचलित टीबी की दवाइयों के साथ या अकेले भी प्रयोग किया जा सके।
इस अध्ययन में छोटी कटेली के अर्क (SVE) का Mycobacterium smegmatis, mc2 155, पर शोध किया गया, जोकि Mycobacterium tuberculosis (Mtb) की जांच के लिए एक मॉडल सिस्टम है। छोटी कटेली के प्रभाव से इस टीबी बैक्टीरिया के विकास दर में कमी पाई गई।
उन्नत तकनीकों जैसे SEM और TLC से पता चला कि SVE के इलाज से बैक्टीरिया की संरचना बदल गई और उनकी कोशिकाओं की दीवार कमजोर हो गई। UPLC/QToF-MS के माध्यम से ज्ञात हुआ कि SVE us ने modern world की टीबी की दवा आईसोनियाजिड (INH) की bio availability को बढ़ाया, जिससे बैक्टीरिया की दवा के प्रति संवेदनशीलता बढ़ गई और दवा का प्रभाव भी बढ़ गया।
Cell line-based infection experiments में, SVE और INH के संयोजन ने बैक्टीरिया के मृत्यु दर में उल्लेखनीय बढ़ावा हुआ और SVE कारण human liver cells में hepato protective symptom भी दिखाई दिए।
आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि पतंजलि के लिए यह अति हर्ष का विषय है कि अब इस अनुसंधान को सूक्ष्म जीवविज्ञान के विश्व प्रसिद्ध peer-reviewed जर्नल “Frontiers in Microbiology” में स्थान मिला है। यह शोध टीबी पर भविष्य के अध्ययनों के लिए नींव का कार्य करेगा जिससे जनमानस को टीबी से बचाव के लिए नवीन संभावनाए मिलेंगी।
इस ऐतिहासिक अनुसन्धान को मूर्तरूप देने में पतंजलि गौरवान्वित अनुभव कर रहा है। पतंजलि आयुर्वेद के ज्ञान और विज्ञान के ध्वज को पूरे विश्व में फहराने और जनमानस को साध्य और असाध्य रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए पूर्ण संकल्पित है।
पतंजलि से जुड़े सभी वैज्ञानिको, कर्मयोगियों का यह ध्येय है कि आयुर्वेद का स्वर्णिम, गौरवमयी युग फिर से लौटे और भारत के इस प्राचीन धरोहर का डंका पूरे विश्व में गुंजायमान हो।