संजय चौधरी, ब्यूरो
सर्दी शुरू होते ही देश विदेश के पक्षियों का जत्था हरिद्वार पहुंच गया है। इस बार हरिद्वार में ब्लैक वैलिड टर्न पहली बार पहुंची है। इससे गंगा के किनारे तिब्बत से सुर्खाब, मानसरोवर से आए राजहंसों की चहकती आवाजे वातारण को मनमोहक बनाने के साथ आनंदित कर रही हैं। हरिद्वार के साथ दूर दराज से आ रहे यात्री भी पक्षियों के झुंड को देखने पहुंच रहे हैं।
शरद ऋतु में जैविक घड़ी और ऋतु परिवर्तन के कारण हजारों पक्षी उत्तरी देशों से भारत भूमि में पदार्पण करते हैं और वसंत ऋतु में वापस स्वदेश, स्वधाम लौट जाते हैं। इस साल हरिद्वार में तिब्बत से सुर्खाब आएं हैं तो मानसरोवर से राजहंस भी आ गए हैं। गंगा घाटी हरिद्वार के अनेकों क्षेत्र-भीमगोडा बैराज, राजाजी नेशनल पार्क, मिस्सरपुर गंगा घाट आदि में विदेशी मेहमान पक्षियों के कलरव से गुंजायमान हैं। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय पक्षी वैज्ञानिक प्रो. दिनेश चन्द्र भट्ट ने बताया कि करीब 27 प्रजातियां दूर देश से व 30 प्रजातियां हिमालयी क्षेत्रों से शीत प्रवास पर हरिद्वार में आ गई है। उन्होंने बताया कि इसमें विलुप्त होने के कगार पर खड़ी आठ प्रजातियां हैं, इनमें पलाश फिस ईगल, ओरियेन्टल डार्टर, रिवर लैपविंग, ब्लैक नैक्ड स्टोर्क, पेन्टेड स्टोर्क, बुली नैक्ड स्टोर्क, इंडियन रिवर टर्न, ब्लैक हैडेड आइविस सामिल हैं। शोध छात्रा पारूल व रेखा ने बताया कि ब्लैक वैलिड टर्न, ब्लैक स्टोर्क, बुली नैक्ड स्टोर्क, नार्दन लैपविंग, येलो विर्टन कई वर्षों के बाद गंगा घाटी में देखे गए हैं, जबकि ब्लैक वैलिड टर्न तो प्रथम बार हरिद्वार क्षेत्र में देखने को मिली है।

यह पक्षी यात्रा करते समय भारतीय उप महाद्वीप में सायबेरिया, मंगोलिया एवं चीन से आते-जाते ये जलीय पक्षी 2-4 स्थलों पर रूकते है और वहीं पर खाद्य रूपी ईंधन ग्रहण करते हैं। फिर ये कई—कई दिनों तक बिना खाए-पिए ही लगातार यात्रा करते हैं। इनकी चोंच में मैगनेटिक सेंसर लगा रहता है जिसका हाल ही के अध्ययन में पता लगा। इससे पक्षी दिशा बोध कर पाता है। भारत में आने वाले पक्षियों का एक विशेष मार्ग जिसे ‘सेंट्रल फ्लाई वे’ कहते है, उसी हवाई मार्ग को पार करते हुए पक्षी एक दूसरे स्थान पर पहुंचते हैं।
