जोगेंद्र मावी, ब्यूरो
हरिद्वार। त्रिस्तरीय पंचायत के लिए जारी हुआ आरक्षण कई नेताओं को बिना चुनाव मैदान में उतरे ही बाहर का रास्ता दिखा गया। जिला पंचायत के कई दिग्गज नेता तो बदले आरक्षण से बाहर हो गए। सबसे ज्यादा नुकसान पूर्व चेयरमैन राव आफाक अली का हुआ है, क्योंकि अन्य नेताओं के पास अभी भी आसपास की सीट पर चुनाव मैदान में उतरने का मौका है। ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में भी कई नेताओं का समीकरण आरक्षण ने बिगाड़ दिया।
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का आरक्षण जारी कर दिया गया। इस चुनाव में ग्राम प्रधान, बीडीसी, जिला पंचायत सदस्य के चुनाव मैदान में उतरने का सपना चकनाचूर हो गया तो नए नेताओं को मौका भी मिलेगा। जिला पंचायत के चुनाव के लिए हुए आरक्षण में पूर्व चेयरमैन राव आफाक अली पूरी तरह से चुनाव से बाहर हो गए, क्योंकि उनकी सीट सलेमपुर महदूद वन महिला के लिए रिजर्व हो गई। जिला पंचायत सदस्य मुकर्रम अंसारी और जयंत चौहान की पैत्रक सीट भी रिजर्व होने से उनके समीकरण बिगड़ गए है। मुकर्रम अंसारी सराय सीट से मैदान में उतरते थे, लेकिन यह भी रिजर्व हो गई। रोशनलाल का भी समीकरण बिगड़ा है। रोशनलाल रावली महदूद से सदस्य थे, अब यह सीट सलेमपुर महदूद दो हो गई, अब सामान्य महिला के लिए हो गई है। अब वे अपनी पत्नी को औरंगाबाद सीट से उतरने की तैयारी में लग गए हैं।
विजयपाल सिंह की सीट मजाहितपुर सतीवाला सामान्य महिला के लिए हो गई, लेकिन उनके पास बोडाहेडी या अलावलपुर से चुनाव मैदान में उतरने का मौका है। भाजपा में शामिल हुए धर्मेंद्र प्रधान की सीट रिजर्व हो गई है, अब वे चुनाव मैदान में उतरे ही राजनीति में समाप्त होने के कगार पर चले गए हैं।
सुबोध राकेश की सीट बदल गई है, लेकिन वे बालेकी युसुफपुर से चुनाव मैदान में उतर सकते हैं।
जिला पंचायत के रणनीतिकार और दिग्गज नेता पूर्व चेयरमैन चौधरी राजेंद्र सिंह का समीकरण बिगाड़ने का काम आरक्षण से करने की कौशिश की गई, लेकिन उनके पाास अन्य सीट प्रहलादपुर, टिकौला और मानकपुर सीट से चुनाव मैदान में उतरने का मौका है। खंडजा कुतुबपुर सीट से भी अपने परिवार की महिला को चुनाव मैदान में उतार सकते हैं। हालांकि कोटवाल आलमपुर सीट को एससी कर दिया गया है, लेकिन उस पर भी वे अपने खास नेता को चुनाव मैदान में उतारकर मैदान में मौका मार सकते हैं।
ब्लॉक प्रमुख का सपना देख रहे कांग्रेस नेता अर्जुन चौहान के गांव की बीडीसी सीट ओबीसी करने के साथ ब्लॉक प्रमुख सीट भी पिछड़ी जाति यानि ओबीसी की कर दी है तो उन्हें मजबूरन चुनाव से तौबा करनी पड़ेगी।
हालांकि जिला पंचायत के अधिकांश नेताओं के पास अभी भी आसपास की सीट से चुनाव मैदान में उतरने का मौका बना रहता है। इसलिए किसी की राजनीति को समाप्त करना नामुमकिन है। क्योंकि नेताओं पास राजनैतिक पार्टी बदलने का मौका भी होता है।
हालांकि अभी आपत्ति दर्ज कराकर बिना जातीय समीकरण के हुए आरक्षण को बदलने का मौका है।
