जोगेंद्र मावी, ब्यूरो
हरिद्वार। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत हरिद्वार लोकसभा से चुनाव मैदान में उतरना चाहते हैं, लेकिन उससे पहले ही उन्हें बड़ा झटका लग गया है। हरिद्वार जनपद में उनके सबसे करीबी नेता साथ छोड़कर पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद के साथ चले गए हैं, हालांकि इसकी अधिकारिक घोषणा नहीं हुई हैं, लेकिन वे वेद मंदिर आश्रम के साथ अन्य कार्यक्रमों में भी नजर आने लगे हैं। बताया जा रहा है कि वे हरीश रावत की पुत्री अनुपमा रावत के व्यवहार और उपेक्षा किए जाने से आहत है।

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को हरिद्वार जिले में राजनीतिक संजीवनी लोकसभा चुनाव—2009 में मिली। इस चुनाव के एक साल पहले 2008 में युवा चेहरा ग्राम सभा अंबूवाला के तत्कालीन ग्राम प्रधान धर्मेंद्र चौधरी हरीश रावत के साथ जुड़ गए थे। ग्राम प्रधान बनकर और हरीश रावत के साथ जुड़कर वे हरिद्वार जनपद की राजनीति में जाना माना नाम होने लगा। धर्मेंद्र प्रधान ने 2010 जिला पंचायत का चुनाव लड़ा, लेकिन चुनाव हार गए। उधर हरीश रावत केंद्रीय मंत्री थे तो धर्मेंद्र प्रधान सबसे करीबी होने के चलते हुए सुर्खियों में छाने लगे। हरीश रावत के हरिद्वार आगमन में हर कदम के साक्षी धर्मेंद्र बनते थे।

फरवरी—2014 में हरीश रावत प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए तो धर्मेंद्र प्रधान के कदम जमीन पर पड़े ही नहीं। जिला प्रशासन से लेकर शासन तक लोगों के काम कराने लग गए। इसी दौरान हरीश रावत की पुत्री अनुपमा रावत ने हरिद्वार की राजनीति में दखल करना शुरू कर दिया। राजनीति में दखल होने पर अनुपमा रावत ने हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा में फोकस करते हुए आवागमन जारी रखा। सन 2015 में जिला पंचायत का चुनाव हुआ तो पार्टी ने भगतनपुर आबिदपुर सीट से तो धर्मेंद्र प्रधान को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया, लेकिन उनके सामने पार्टी के पूर्व एमएलसी गजे सिंह को चुनाव मैदान को उतार दिया। हालांकि हरीश रावत ने कई सीटों पर कांग्रेस के दो—दो प्रत्याशी उतार दिया तो कई दिग्गजों को हार का स्वाद चखना पड़ा। हालांकि 2017 में हरीश रावत को भी हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा से हार का मुंह देखना पड़ा।

अब 2022 में हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा से उनकी पुत्री अनुपमा रावत चुनाव मैदान में उतरीं तो हरीश रावत के करीबी एवं कांग्रेस के सभी नेताओं ने मेहनत करते हुए उन्हें जीत दिलाने में अह्म भूमिका निभाई। उनके मुख्य चुनाव एजेंट बने धर्मेंद्र प्रधान ने दिन रात काम करते हुए जनता से अपील करते हुए वोट दिलाई, जबकि चुनाव के समय में भी अनुपमा रावत के घमंड के किस्से सुनाई देते थे।
अब अनुपमा रावत चुनाव जीत गई तो कांग्रेस के नेताओं की उपेक्षा होने के मामले निरंतर सामने आ रहे हैं। सरकारी कब्जे हटाने को भी विशेष वर्ग का उत्पीड़न बताने लगी। चुनाव मैदान में काम करने वाले नेताओं को दरकिनार कर दिया। कार्यालय का उद्घाटन किया तो नाममात्र के नेताओं को बुलाया। इससे लोगों में विधायक के प्रति आक्रोश पनपता हुआ नजर आ रहा है।

इसी का नतीजा यह सामने आया कि हरीश रावत का सबसे करीबी नेता धर्मेंद्र प्रधान समर्थकों का साथ छोड़कर पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद के साथ जुड़ गए हैं। उनके बुलावे पर स्वामी यतीश्वरानंद धर्मेंद्र के घर पर जा चुके हैं।
बताया जा रहा है कि जिला पंचायत चुनाव में उनके क्षेत्र की सीट पर अनुपमा रावत किसी मुस्लिम नेता को प्रत्याशी बनाने का वादा कर चुकी हैं, जबकि उनसे सलाह तक नहीं ली जा रही है। धर्मेंद्र प्रधान को क्षेत्र में आगमन पर पूछा तक नहीं जा रहा है। ऐसे में धर्मेंद्र प्रधान ने उनका साथ छोड़ने का निर्णय ले लिया है। इससे हरीश रावत को लोकसभा चुनाव से पहले ही बड़ा झटका लग गया है। राजनीति जानकारों का कहना है कि अपनी पुत्री के जीतने के साथ पांच विधायक कांग्रेस के होने के चलते हुए हरीश रावत लोकसभा चुनाव के लिए हरिद्वार सीट को चुन सकते हैं। बताया जा रहा है कि अभी लालढांग क्षेत्र की कांग्रेस नेत्री भी किनारा कर चुकी हैं।